मानव और दानव का वर्तमान, भविष्य और भूत, भगवान श्रीकृष्ण, यानि विष्णु हैं. कृष्ण ही दुःख और कृष्ण ही सुख हैं और वे ही काल हैं. इस विश्व मे जो भी होता है वो श्रीकृष्ण ही करते या करवाते हैं। कृष्ण ही आदि हैं कृष्ण ही अंत हैं.
भगवान विष्णु के आठवे अवतार और द्वापर युग में द्वारका के राजा, हिंदू भगवान श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन अनुसार, रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का प्रेयसी राधा से आत्मिक और पत्नी रुक्मिणी से दैहिक संबंध माना गया है।
यदुवंशियों के कुल गुरु गर्ग ऋषि जिन्होंने कृष्ण और उनके भाई बलराम का नामकरण किया था द्वारा लिखी गई गर्ग संहिता मे कृष्ण के जीवन से जुड़े हर सवाल का जवाब है. गर्ग सहिंता के गोलोक खंड के पहले अध्याय ने राधा और रुक्मणि को दो अलग अलग किरदार बताया है जहाँ राधा और कृष्णा की वार्तालाप है जिसमे पृथ्वी मे अवतार लेने से पहले कृष्ण राधा के पूछने पर उनको बताते हैं मैं वासुदेव और देवकी के सम्मुख कारागार मे प्रकट हो जाऊंगा और शेषनाग मेरे भाई बलराम के रूप में माँ देवकी के गर्भ से मुझसे पूर्व जन्म लेंगे। लक्ष्मी जी राजा भीष्म के घर उत्पन्न होंगी इनका नाम रुक्मणि होगा और वो मेरी अश्टभारिया मे से पहली पत्नी होंगी। गर्ग सहिंता मे राधा-कृष्णा के किशोर अवस्था मे गंधर्व विवाह की बात लिखी गई है और कृष्णा-रुक्मणि के विवाह का अलग से वर्णन है, तो गर्ग सहिंता इस बात की गवाही देती है की राधा कृष्ण को पूरा करती हैं तो रुक्मणि श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी है.
रुक्मिणी और राधा का सम्बन्ध व दर्शन बहुत गहरा है। इसे सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण जगत की तीन अवस्थाएं हैं।
1. स्थूल; 2. सूक्ष्म; 3. कारण
स्थूल जो दिखाई देता है जिसे हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं और हाथों से छू सकते हैं वह कृष्ण-दर्शन में रुक्मणी कहलाती हैं। सूक्ष्म जो दिखाई नहीं देता और जिसे हम न नेत्रों से देख सकते हैं न ही स्पर्श कर सकते हैं, उसे केवल महसूस किया जा सकता है वही राधा है और जो इन स्थूल और सूक्ष्म अवस्थाओं का कारण है वह हैं श्रीकृष्ण और यही कृष्ण इस मूल सृष्टि का चराचर हैं। अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो स्थूल देह और सूक्ष्म आत्मा है। स्थूल प्रकृति और सूक्ष्म योगमाया है और सूक्ष्म आधार शक्ति भी है लेकिन कारण की स्थापना और पहचान राधा होकर ही की जा सकती है।
यदि चराचर जगत में देखें तो सभी भौतिक व्यवस्था रुक्मणी और उनके पीछे कार्य करने की सोच राधा है और जिनके लिए यह व्यवस्था की जा रही है और वो कारण है श्रीकृष्ण। अतः राधा और रुक्मणी दोनों ही लक्ष्मी का प्रारूप हैं परंतु जहां रुक्मणी देहिक लक्ष्मी हैं वहीं राधा आत्मिक लक्ष्मी हैं।
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